रमेश जी गुप्त

Posted By: Hemraj Maddeshia

On: 17-07-2021

Category: महत्वपूर्ण व्यक्ति

Tags: सिलीगुड़ी

कुछ ऐसी विभूतियों के जीवन पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से इस कॉलम को रखा गया है कि उनके बीते जीवन की घटनाओं से हमें सीख मिले | तो आइए हम उनमे से एक विभूति के जीवन के ऊपर देखें ।

रमेश जी गुप्त सिलीगुड़ी ख्यातिलब्ध के बने "कानू भवन" से स्वजाती बन्धुओं में उनके स्वर्गारोहण के उपरान्त भी बनी है और बनी रहेगी भी | मानव जन्म तभी सार्थक होता है, जब वह अपनी कीर्ति इस धरती पर रख जाए | रमेश जी भी ऐसे ही मानव श्रेणी में आते हैं ।

रमेश जी गुप्त का जन्म बिहार प्रान्त के जनपद छपरा के सीतलपुर नामक एक छोटे से गांव में हुआ था । आपके पिता स्वर्गीय डॉक्टर बून्दी लाल जी गुप्ता थे | आप एक पेशेवर डॉक्टर थे ।

सिलीगुड़ी में "कार्सियांग मेडिकल हाल" नामक दुकान में आपने सामान्य नौकरी से अपने जीवन की शुरुआत की | यहीं पर काम करते-करते आपने 1964 ई० में एक दुकान खोली जिसका नाम गुप्ता मेडिकल हाल रखा गया । इनके रक्त मे तो पिता डॉक्टर का ही रक्त प्रवाहित हो रहा था, इसलिए कम शिक्षा प्राप्त करते हुए भी आपने पेशे में मेडिसिन को ही चुना ।

आप एक सफल व्यवसायी होने के साथ-साथ शिक्षा प्रेमी भी थे, शिक्षा के क्षेत्र में भी आपने महत्वपूर्ण कार्य किए थे । आप देशबन्धु हिन्दी हाई स्कूल के संस्थापक सदस्य थे एवं बहुत वर्षों तक विद्यालय के सचिव पद पर कार्यरत रहे । डॉ० राजेंद्र प्रसाद गर्ल्स हाई स्कूल के भवन निर्माण कमेटी के भी सदस्य रहे ।

आपने आर्यसमाज सिलीगुड़ी के अध्यक्ष पद पर रहकर समाज के कार्यों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण कार्य किया । बहुत से गरीब छात्रों को विभिन्न गुरुकुलों मेभेज कर उन्हें शिक्षा दिलवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।

आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उषा गुप्ता भी एक सुगृहिणी है । स्वभाव में मिलनसार हैं | आप कानू भवन की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष पद पर हैं । यह भी हमारे लिए प्रशंसनीय है ।

जो तेजस्वी है उसकी तेजस्विता सर्वदा प्रकाश फैलती रहती है । हम और आप सिलीगुड़ी के 'कानू भवन' को देख रहे हैं, यह उन जैसे कुछ कीर्तिमान लोगों का ही देन है । आप इस कानू भवन थे आमृत्यु अध्यक्ष पद पर रहे हैं और इस भवन को निर्माण ही आपका सर्वदा ध्यान धारणा बना रहा, जो आपके जीवन का एक सराहनीय कार्य रहा | यह हमारी अगली पीढ़ी के लिए दिग्दर्शन का कार्य करता रहेगा ।

आप इस भवन निर्माण के कार्यार्थ अपने परिचय और विभिन्न स्वजाती बंधुओं से सम्पर्क स्थापित करते रहकर इतनी विशाल भवन की स्थापना कर दी | यह कम गौरव की बात नहीं है । आपने इस धरा से 22 अप्रैल 2001 को स्वर्गारोहण किया ।

आप एक भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं | पुत्र-पुत्रियों को डॉक्टर, व्यवसायिक बनाने में हमारे समाज के लिए उदाहरण रखा है । आप एक डॉक्टर के पुत्र होते हुए भी शिक्षाभाव के दर्द को आजीवन समझा । इस अभाव की पूर्ति अपने पुत्र-पुत्रियों को शिक्षित बनाकर अपने मनोभाव को पूर्ण किया ।

आज ऐसे कर्मठ और जीवन संग्राम में लड़कर अपने को प्रतिष्ठित करने वालों के प्रति आपना आदर और श्रद्धा समर्पित करते हैं । हमने ऐसे लोगों से एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है, वह यह कि जीवन की आर्थिक कठिनाइयों से जुड़ने वाला हर व्यक्ति ही अपनी अंतिम मंजिल तक पहुंचा है | इतना ही नहीं, वह अपने तो प्रतिष्ठित हुआ, अपने से निकट परिचितों को भी परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक उन्नति के लिए हर सम्भव उपाय बताया।

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