प्रियदर्शी जगन्नाथजी गुप्त

Posted By: सिध्दार्थ कुमार गुप्त

On: 11-07-2021

Category: महत्वपूर्ण व्यक्ति

Tags: आज़मगढ़

20 अगस्त सन 1952 ई. को पिपराहा, भीमवर, जनपद आजमगढ़, उत्तर प्रदेश की धरती ने जिस अनुपम शिशु को अपने जिस स्नेहसिल में पाकर अत्यंत आनंद का अनुभव किया था | वह प्रियदर्शी जगन्नाथ जी गुप्ता हैं । यह उस लालित्य को भली प्रकार अभिव्यक्त करने वाले अत्यंत सुचिकण एवं प्रयुक्त मातृत्व के अवधारक हैं | इनके पिता श्री का नाम श्रीमंत श्यामलाल गुप्त तथा माता श्री का नाम श्रीमती गुलाबीराज है । परिवार परम कुलीना, संस्कृतिक एवं दिव्य विचारों का पोषक रहा है | नवोदित बालक उत्तम कुटुम्ब एवं परिवेश का प्रभाव बिम्ब प्रतिबिम्ब रूप में पड़ा है ।

व्यापार में प्रवेश

प्रियवर जगन्नाथ जी गुप्त स्नेह एवं प्यार के पालने में झूले संस्कारों की परिधि में बड़े तथा अभिभावकों एवं गुरुजनों के परिवेश में शिक्षा ग्रहण किए । वे इन्टरमीडिएट कॉलेज की शिक्षा के उपरान्त कोलकाता नगर के बजबज अन्चल में आ गए तथा पिताश्री के कार्यों में सहयोग करने लगे। श्री जगन्नाथ जी गुप्त कठोर परिश्रम, मृदुभाषी स्वभाव, उत्तम कार्य योजना, मेघा शक्ति एवं सम्मोहन व्यक्तित्व से पिता के लुब्रिकेटिंग-आयल धन्धे को देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय जगत में भी विस्तारित किए। संपत्ति वे लुब्रिकेटिंग-आयल, प्रॉपर्टी-डीलिंग, विस्ट्ल पेट्रोलियम, जे० जे० निटिंग प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के अतिरिक्त शिक्षण क्षेत्र में कोलकाता, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार एवं उत्तर प्रदेश में विशिष्ट स्थान प्राप्त किए ।

सामाजिक जीवन

माननीय जगन्नाथ जी गुप्त एक संवेदनशील समाजसेवी पुरुष हैं | उनके अन्तःकरण में व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ समाज जीवन के प्रति सहयोग एवं करुणा के भाव हैं | वे अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य महासभा राज्य शाखा पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष होते कोलकाता तथा देश के अनेक स्थानों में अपने सुयश के अनेकानेक कीर्ति-स्तम्भ स्थापित किए । उदाहरण स्वरूप महामना श्यामलाल गुलाबी राज नेत्र चिकित्सालय, नूतन बाजार, बजबज चौबीस परगना (दक्षिण), माननीय उर्मिला देवी मध्देशिया धर्मशाला, अमिला, मऊ, श्रधास्पद श्यामलाल गुलाबी राज मददेशिया वैश्य धर्मशाला, भीमवर, आजमगढ़ तथा देश के अन्य क्षेत्रों में इन के सहयोग से संचालित धर्मशालाएं, मन्दिर, विद्यामन्दिर, अनाथआश्रम, पथिक-निवास, अतिथि-गृह एवं संस्थाएं मूर्तरूप से स्थापित होकर सम्यक कार्य कर रहे हैं।

उदारचेता

माननीय जगन्नाथ जी गुप्त धीर, मृदुल, ललित एवं प्रशांत स्वभाव के महामानव हैं | माधुर्य इनकी चेरी है तथा करुणा इनकी सहचरी | अपने अधरों पर सहज मुस्कान और अभिव्यक्त करते हुए वे पीड़ित एवं असहाय बंधुओं की कठिनाइयों को ध्यानपूर्वक सुनते, उस पर चिंतन करते तथा यथोचित सहयोग करते हैं | वे किसी को निराश नहीं करते, सभी इनके भवन से इनके स्नेह को प्राप्त कर हंसते हुए प्रस्थान करते हैं। समाज के ऐसे उदार एवं सहयोगी व्यक्ति देश में विरले ही हैं।

यशस्वी स्वरूप

माननीय जगन्नाथ गुप्त का व्यक्तित्व महान है | उनके हृदय में सागर का गंभीर तथा चिंतन में नागाधिराज की उच्चता है | वह रोते हुए को यशस्वी स्वरूप, स्नेह एवं सहयोग से हँसा देते हैं | वे अपने मित्रों एवं सहयोगियों के प्रति अत्यंत ऋजु, विनम्र और उदार तथा सर्वतो भावेन समर्पण के लिए कटिबद्ध रहते हैं, किंतु जहां उन्हें तथा उनके मित्रों के मान-सम्मान में चुनौती मिलती है | वहां वे अंगद की तरह अपने चरणों को स्थिर कर देते हैं, पीछे नहीं हटते हैं, दुश्मन को ललकार ने लगते हैं, दृढ़ता के साथ संकल्प सहित कार्य संचालन करते हैं, पीठ नहीं दिखाते हैं और न दिनता के शब्द उच्चारित करते हैं। श्री जगन्नाथ गुप्त के सम्बन्ध में " न्यायात् पाथत प्रविचालुन्त न धीरा: " यह यथोक्ति पूर्ण रूपेण सत्य है | माननीय जगन्नाथ जी गुप्त अपने राष्ट्र एवं समाज हितकारी कार्यों से सम्पूर्ण देश में लोकप्रिय हैं | ऐसे यशस्वी महापुरुष के जीवन को परमपिता परमेश्वर चिरकाल तक जीवान्त रखें, यही प्रार्थना है।



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