बसन्त गुप्त
Posted By: बालेश्वर नाथ गुप्त
On: 18-03-2019
Category: महत्वपूर्ण व्यक्ति
Tags: मऊ नाथ भन्जन, मऊ
एक वयोवृद्ध निर्भीक, साहसी, सामाजिक सैनिक की प्रस्तुति व लम्बी रचना को काट छांट के बीच कशमकश एवं धर्मसंकट
से कुछ लाइन को निकालने का हिम्मत कर सका, मूलत: प्रस्तुत है | जिनकी कार्यशैली व व्यवहार से चमकृत उर्जा
का संचार होता है, वह व्यक्तित्व है श्री बालेश्वर नाथ गुप्त, पूर्व जनपद अध्यक्ष, कुशीनगर - संग्रहकर्ता www.abmvs.com
बसंत गुप्ता जी, जिनको लोग अधिकतर रेंजर साहब के नाम से जानते और पुकारते हैं, किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं l फिर भी उनके जीवन के विभिन्न सोपानो को पाठकों के समक्ष रखने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूं l इनसे मेरी पहली भेंट अमिला ( मऊ ) जहां के मूल निवासी हैं में हुई थी l मेरी भी वहां रिश्तेदारी है इसलिए प्राय: वहां जाता रहता हूं l संजोग से हमारा पूर्व औपचारिक परिचय, उस समय और भी निकटता में परिवर्तित हो गया जब वर्ष 2002 में, कुशीनगर - देवरिया जनपद का संयुक्त अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य सभा का अधिवेशन, कसया ( कुशीनगर ) में आयोजित हुआ था l इस अधिवेशन की लगभग सभी जिम्मेदारियों के साथ स्मारिका के संपादन और प्रकाशन का भार भी इन पर था l स्मारिका के लिए लेख आदि लेकर कई बार इनसे मैं कुशीनगर में मिला और देखा समझा l इनके महत्वपूर्ण योगदान से अधिवेशन सफल ही नहीं अपितु पूर्वांचल के जिलों में समाज कुंभकर्णी निद्रा से उठ खड़ा हुआ l यो तो कसया निवासी डॉ सीo पीo गुप्ता जी और भलुअनी ( देवरिया ) निवासी प्राचार्य श्री राम स्वरूप गुप्ता जी, अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य सभा से बहुत पहले से जुड़े थे और संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके l वे सदा उस समय भी विद्यमान थे l लेकिन संगठन सुसुप्त अवस्था में निष्क्रिय हो चला था l दो कर्मठ योद्धाओं के साथ बसंत कुमार गुप्त जी तीसरे योद्धा का संगम ऐसा हुआ कि वर्ष 2002 कुशीनगर देवरिया जनपद का जागरण काल बन गया l डॉक्टर सीo पीo गुप्ता जी, प्राचार्य राम स्वरूप गुप्ता जी और बसंत कुमार गुप्ता जी इन तीनों महानुभाओ की मद्धेशिया कान्दू वैश्य समाज कहा जाए तो शायद कोई अतिशयोक्ति ना होगी l इन लोगों की सक्रियता से निर्जीव संगठन में जान पड़ गई केवल कुशीनगर देवरिया ही नहीं अपितु संपूर्ण उत्तर प्रदेश में इन लोगों ने भ्रमण किया और समाज में जागरूकता पैदा करके संगठन को मजबूत किया l
उल्लेखनीय है कि उस समय डॉक्टर सीo पीo गुप्ता जी प्रदेश अध्यक्ष बन चुके थे l ऐसे में संगठन के प्रचार-प्रसार, विस्तार और मजबूती की कार्य योजना का रूपरेखा तैयार कर उसे कार्यान्वित करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी श्री बसंत कुमार गुप्त जी के कंधों पर आ गया l इन वनाधिकारी के दायित्व पूर्ण पद पर रहते हुए मद्धेशिया संगठन का सामाजिक कार्य करना सरल नहीं था फिर भी दोनों काम बखूबी किया l अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य महासभा से इनका जुड़ाव एक वरदान साबित हुआ जिनके परिश्रम मार्गदर्शन से समाज निरंतर प्रगति कर रहा है l यह कर्तव्य निष्ठा सरलता और मृदुलता के स्वयं में संदेश हैं l उनके जीवन वृत्त के माध्यम से इस संदेश की सुरभि जन-जन में फैले यही लेखन का अभिप्राय है l
श्री बसंत कुमार जी का जन्म कुंडली के अनुसार 16-02-1955 को अमिला जनपद मऊ में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार में बसंत पंचमी के दिन हुआ था l वैसे उस स्कूल के अभिकरण में जन्मतिथि 01-09-1956 दर्ज है l इनके दादा स्वर्गीय फूलचंद प्रसाद जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रह चुके हैं l पिता स्वर्गीय शिवकुमार गुप्त जी अखिल भारतीय मध्य देशीय सभा के प्रांतीय उपाध्यक्ष थे l इनके दादा जी बताते थे कि इनका जन्म चुकी बसंत पंचमी के दिन हुआ इसलिए नाम बसंत कुमार रख रखा गया l अमिला का सभ्रान्त परिवार सदैव से सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहा है l प्राइमरी तक की शिक्षा घर पर ही उनकी माता स्वर्गीय कलावती देवी गुप्ता ने इन्हें दी और सीधे कक्षा 4 में प्रवेश दिलाई l इस प्रकार अमिला बाजार के प्राइमरी पाठशाला में कक्षा 5 तक की शिक्षा मिली l तत्पश्चात बाबा थानीदास जूनियर हाई स्कूल, सोनाडीह से कक्षा 6 से 8 तक की शिक्षा प्राप्त की l उल्लेखनीय है कि उस समय गुरुजन बिना किसी लोभ लालच के बच्चों को रात्रि में स्कूल में बुलाकर पढ़ाया करते थे जिसका उद्देश्य मात्र यही था कि सभी बच्चे अच्छे अंको से परीक्षा उत्तीर्ण कर सके l सन 1971 में शांतानंद स्वतंत्र भारत इंटर कॉलेज अमिला बाजार से हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया और 1973 में, इंटर कॉलेज की इंटर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किया और कॉलेज में शीर्ष स्थान मिला l उस समय द्वितीय श्रेणी में भी परीक्षा पास करना काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि शिक्षा का स्तर ऊंचा था l
इंटर उत्तीर्ण होने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी विज्ञान में स्नातक किया और साथ ही वर्ष 1973 से 76 तक सीo पीo एमo टीo / पीo एमo टीo की मेडिकल परीक्षा में भाग लिया l उनका प्रथम उद्देश्य डॉक्टर बनने का था जो दुर्भाग्य से पूरा ना हो सका l सन 1976 में ला स्कूल बीo एचo यूo में प्रवेश लिया और 1978 में लोक सेवा आयोग से रेंजर्स सेवा में चयन हो गया l इस हेतु 1989 से 80 तक वानिकी प्रशिक्षण संस्थान हल्द्वानी ( नैनीताल ) में प्रशिक्षण हुआ l
प्रशिक्षण के उपरांत, वन अधिकारी के पद पर प्रथम नियुक्ति गाजीपुर जनपद में हुई l तत्पश्चात बलिया, वाराणसी, कानपुर, देहरादून, बहराइच, गोवा, देवरिया कुशीनगर, देवरिया, वाराणसी और शाहजहांपुर काम करने का पारितोषिक भिलाऊ सतर्कता जांच के रूप में मिला l और पदोन्नति बाधित हुई l वह दूसरी ओर बहराइच और गोंडा के कार्यालय में ही स्टेट अनरेशिया से सम्मानित भी किया गया l इस प्रकार की परस्पर विरोधी सख्त कार्यवाही शिवाय मानसिक पीड़ा के और क्या l
लगातार एक के बाद एक मानसिक यन्त्राओ से गुजरने के बाद शुभ अवसर जून 2012 में जब स्पेशल डीo पीo सीo ने पदोन्नति के साथ पुरानी ज्येष्ठा प्रदान की l इस प्रकार सेवानिवृत्ति से पूर्व, पूर्व प्रतिष्ठा के साथ सत्य की विजय हुई l
ऐसा प्रतीत होता है कि महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए समाज सेवा का जो उत्कृष्ट कार्य उन्होंने किया उसके अंतराल में विभागीय उत्पीड़न भी एक कारक है l जिससे त्रस्त होकर समाज सेवा की ओर उन्मुख हुए तथा उसमें राहत का विकल्प दिया l उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि "जलालत भरे षड्यंत्रकारी, झेलाऊ जाँच के आधार पर 2006 में डीo पीo सीo की अयोग्यता के संताप को सामाजिक सेवा ने संजीवनी का कार्य किया सामाजिक अभिरुचि ने आपदाओं से संघर्ष की और मृत्युंजयी जिजीविषा को उत्प्ररेरित किया l" सामाजिक सेवाओं में मानसिक शक्ति संतुलन को निरंतर धारदार बनाया l नि:संदेह इससे अच्छी और बड़ी बात क्या हो सकती है कि इन्होंने अपनी मानसिक पीड़ा को दूसरों का कष्ट दूर करने में भुला दिया l
यह भी एक संयोग ही था कि इनका अधिकांश कार्यकाल पूर्वांचल के जिला देवरिया, कुशीनगर और वाराणसी में व्यतीत हुआ और वहीं से समाज सेवा की और अग्रसर हुए l इन जिलों में मध्यदेशीय कान्दू वैश्य समाज के लोगों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है l यहां रहते हुए इस समाज के लोगों की समस्याओं को निकट से देखने और समझने का उन्हें अवसर मिला l यह समाज दबा पिछड़ा तो हैं ही जागरूकता का भी अभाव था l मन में उत्कंठा जगी थी इस समाज के सर्वागीण विकास के लिए कुछ किया जाना चाहिए l अपितु लोगों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक होने तथा एकता के सूत्र में बांधने का आह्वान किया l फ़लस्वरुप इस समाज के कई समस्याओं का निराकरण हुआ l इनकी संगठन क्षमता ही था कि वर्ष 2005 में शताब्दी समारोह के अंतर्गत जनपद देवरिया को सर्वश्रेष्ठ जनपद का दर्जा मिला l समाज सेवा के साथ यह एक और विद्या में पारंगत है वह है लेखन कार्य l जिसका श्रीगणेश छात्र जीवन से ही, विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में संपादक के नाम पत्र स्तंभ में लेखन के माध्यम से किया l देवरिया - कुशीनगर के कार्यकाल में वन विभाग की पत्रिका "पर्यावरण संदेश" का संपादन तथा 2001 में ऑपरेशन हरित अभियान के दौरान "बुद्ध वृक्ष" का प्रकाशन और कुशीनगर में ही पंचवटी अभियान में सक्रिय योगदान हेतु विभागीय सम्मान मिला l विभिन्न सम्मेलनों में प्रकाशित कई स्मारकाओ को कुशल संपादन इन्होंने किया l जिसमें प्रमुख रुप से कुशीनगर देवरिया का संयुक्त जनपदीय अधिवेशन वर्ष 2002, अनपरा सोनभद्र का सम्मेलन वर्ष 2011 और शताब्दी समारोह व कुल गुरु संत गणिनाथ जयंती समारोह वर्ष 2005 स्मारिका का संपादन और प्रकाशन है l
श्री गुप्ता जी में अन्याय के विरुद्ध आक्रोश के साथ संघर्ष की भी क्षमता है l उदाहरण स्वरूप, 23 जनवरी 2010 को घटित पुलिस जुल्म की वह बर्बर घटना जो बोदरवार ( कुशीनगर ) निवासी शिवशंकर मद्धेशिया के छोटे पुत्र 18 वर्षीय आशीष कुमार के साथ घटित हुई, पाठकों के समक्ष रखना उचित समझता हूं l लोगों की स्मृति पटल पर यह मानवीय घटना अभी तक सजीव बनी हुई है l निरपराध आशीष कुमार को पुरानी बस्ती थाना ( बस्ती ) और थाना पिपराइच जनपद गोरखपुर की संयुक्त टीम ने, मोटरसाइकिल चोरी के मनगढ़ंत आरोप में उसके घर से उठा ले गए तथा बेरहमी से पिटाई की जिससे उसके कमर से नीचे तक का भाग दोनों पैर सहित संज्ञा शून्य हो गया l पुलिस की इस मानवीय कृतियों से श्री गुप्ता जी काफी आहत हुई तथापि अपने कर्तव्य का निर्वहन बड़ी तत्परता, निष्ठा और विवेक से किया l आशीष को आनंद लोक हॉस्पिटल गोरखपुर में दाखिला करवाया चिकित्सा के समुचित व्यवस्था की और धन की कमी से इलाज के लिए लोगों से संपर्क या सहायता की अपील की l पुलिस के विरुद्ध आक्रोष के साथ आशीष की सहायता के लिए लोग उमड़ पड़े l तत्पश्चात जिन थानों की पुलिस कर्मियों ने आशीष को अपाहिज बनाया था उनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए शासन प्रशासन में आवाज बुलंद की गई l हर सक्षम स्तर पर न्याय का गुहार हुई l परिणाम स्वरुप अपराधी पुलिस कर्मी दंडित हुए और मुआवजा भी मिला l यदि उस समय गुप्ता जी ना होते पुलिस का यह अपराध अंधकार के गर्त में दफन हो जाता l पाठकों के संज्ञान में यह बात लाना आवश्यक समझता हूं कि लगभग 3 वर्ष पूर्व यह गंभीर रूप से से अस्वस्थ हुए थे परन्तु स्वस्थ होते ही उसी जीवन्तता के साथ पुनः सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे |
यद्यपि की दवा निरंतर चल रही है और समय पर जांच भी होती रहती है | उनकी जीवनी काबिले तारीफ और
अनुकरणीय है |
यह आकलन कठिन है कि साहित्य सेवा में इनकी रुचि अधिक है या समाज सेवा में | इस संबंध में बस इतना ही कहा
जा सकता है कि साहित्य से इनका लगाओ छात्र जीवन से ही है | फिर भी दोनों क्षेत्रों में संतुलन बनाए हुए हैं |
ऐसा देखा गया है कि कुछ लोग सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद अपने बौद्धिक क्षमता का सार्थक उपयोग
राजनीति, समाज और साहित्य सेवा में करते हैं और अप्रत्याशित सफलता भी प्राप्त करते हैं | ये भी उन्ही हस्तियों में
से एक है | सेवा निवृत्त काल में, श्री गुप्ता जी ने अपने साहित्य अभिरुचि का प्रखर क्रियान्वयन "खलिहर पुराण" के
लेखन से किया है | खलिहर पुराण स्तंभ पाठको में काफी लोकप्रिय हो चुका है | शासन प्रशासन की लापरवाही,
राजनीतिक उठापटक, नेताओं का बड़बोलपन, अपराध और भ्रष्टाचार तथा सामाजिक स्वतंत्र समस्याओं को बड़ी ही
चुटकुले अंदाज में निर्भीक और निष्पक्ष तेवर के साथ अपने इस स्तंभ में उठाते हैं | जिसमें व्यंग और विनोद का भी समावेश
होता है | सोशल मीडिया पर यह समय - समय पर आता रहता है जिसकी बड़ी बेसब्री से पाठक गण प्रतीक्षा करते रहते हैं |
" बुद्धम शरणम गच्छामि संघम शरणम गच्छामि "