कर्म पुरुष स्व श्री सागर प्रसाद गुप्त
Posted By: रवीन्द्र कुमार , नजफगढ़ , नई दिल्ली
On: 17-08-2017
Category: महत्वपूर्ण व्यक्ति
Tags: नई दिल्ली
🎊 कर्म पुरुष स्व श्री सागर प्रसाद गुप्त ,
अखिल भारतीय मध्यदेशीय वैश्य सभा, दिल्ली प्रदेश के प्रथम् अध्यक्ष 🎊
आपका जन्म माघ मास शुक्ल पक्छ पंचमी (वसन्त पंचमी )सम्वत विक्रमी 1979 को सन 1923 ई0 पहली जनवरी को ग्राम रुद्रपुर , बलिया , उत्तर प्रदेश में हुआ था । आपके पिता श्री रामप्रसाद एव माता माता भुनेश्वरी देवी ने आपके लालन पालन के साथ साथ उत्तम संस्कारो पर विशेष बल दिया जो कालांतर में समाहित होते गए । आपका संयुक्त परिवार एक सम्भ्रान्त जमीदार एव चीनी व्यवसाय से जुड़ा था। आपकी प्रारंभिक शिक्छा रुद्रपुर प्राइमरी स्कूल से शुरुआत हुई और बाल्य अवस्था से ही आपकी रुझान पढ़ाई में अव्वल थी । सन 1936 में सातवी में प्रथम् श्रेणी में पास किया । मिडिल स्कूल पास करने के बाद आपका नामांकन एल डी मेस्टन हाई स्कूल बलिया में हुआ जो 1941 में डिग्री कालेज बन गया और नाम बदलकर सतीश चंद्र कालेज बलिया , उत्तर प्रदेश रक्छ गया है ।
आपकी हाई स्कूल की अंतिम बोर्ड परीक्छा थी की 09 अगस्त 1942 के दिन महात्मा गांधी ने " अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन " का नारा दिया। सभी शिक्छन संस्थाएं , व्यवसायिक प्रतिष्ठान एव कल कारखाने बन्द हो गया, जगह जगह धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया। शहर में लाठी चार्ज, गोली चार्ज के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया और सभी दमनकारी हथकंडों से आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया गया, नामजद आंदोलनकारियों की धर पकड़ शुरू हो गई जिसमें आपका भी नाम शामिल था ।
पुलिस द्वारा छापा मारने पर आपकी गिरफ्तारी हो गई हवालात में भारी मार पिटाई पश्चात बलिया जेल में डाल दिया गया। दो दिन जेल में गुजारने के बाद तीसरे दिन शहर से दूर गाडी में बिठाकर छोड़ दिया गया । जिस घर के बच्चे आंदोलन में जुड़े थे अथवा बलिया में पढ़ाई कर रहे थे , उन सभी पर गोरे सिपाहियों ने तहसीलदार मुखिया की मदद से 25 रूपये से 500 रूपये तक का अर्थदंड लगाया जिसमे आपके पिता जी को 300 रूपये देने पड़े थे ।
पहली सितम्बर 1942 ई0 को दमन के बाद शिक्छन संस्थाएं खुल गई आंदोलन को दबा दिया गया और सभी बड़े नेताओं को जेल के अंदर डाल दिया गया था । तीन सितम्बर को विद्यालय जाने पर आपको पुलिस पुनः पकड़कर ले गयी और तीन दिनों पश्चात आपको स्कुल से रेस्टीकेट कर दिया गया , आपके साथ आपके आठ सहपाठीयों को रेस्टीकेट की सजा मिली । आप मायूसी और दुःख के साथ गाँव लौट गए । घर पर प्राकृतिक आपदा एव गृह कलह (बंटवारे ) से घर की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी । इसी बीच सरकारी आदेश पर रेस्टीकेट छात्रों को कलेक्टिव फाइन 50 रूपये जमा करा कर पुनः एडमिशन कर लिया गया और बोर्ड परीक्छा में कुछ माह पढ़ाई पश्चात परीक्छा में शामिल हुए और दिव्तीय श्रेणी में पास हुए ।
घर की आर्थिक हालात ठीक नही होने के कारण कानपुर में अपनी जीवन की कठीन दौर को पार करते हुए 1954 -55 में दिल्ली आये और पुरानी दिल्ली के स्वजातियो से मुलाकात हुई । ये क्रमशः मुलाकाते 1980 में अ भा म वैश्य महासभा के रूप में सृजित किया गया और आप प्रथम् अध्यक्छ के रूप में चयनित हुए ।
आज हम लोग वृक्छारोपन को प्राथमिकता दे रहे हैं कि भविष्य में आने वाली हमारी नस्ले पर्यावरण के दृष्टिकोण से शुद्ध वायु , स्वच्छ वातावरण को ले सके , कल जो फल मिले उसका मधुर रस्वादन कर सके । सागर प्र गुप्त जी की स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज़ है, जो आज आप या हमलोग आज़ादी के खुले वातावरण में साँस ले रहे है । आज दिल्ली प्रदेश मद्धेशिय समाज इस महान विभूति को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है । आप आज भी अमर है । देश और समाज के लिए आपने जो किया सदैव याद रखा जायेगा ।