श्री पब्बर राम गुप्त

Posted By: Hemraj Maddeshia

On: 27-07-2021

Category: हमारे विधायक

गाजीपुर, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

एक पत्र श्री अजय कुमार मिश्र जी के माध्यम से कुछ दिनों पूर्व हासिल हुआ | पत्र का पब्बर राम पर केन्द्रित गाजीपुर से प्रकाशित होने जा रही स्मारिका के लिए कुछ संस्मरण लिखने से सम्बन्धित था | स्मारिका का लोकार्पण का० पब्बर राम की प्रथम पुण्य तिथि 24 मार्च 2007 को होना तय है | एक लम्बी ज़िन्दगी को जन संघर्षो के हवाले कर देने वाले पब्बर भाई की स्मृति छबियां कम्युनिस्ट पार्टी का एक सचेत संघर्षशील साथी , गाजीपुर नगरपालिका का एक जन प्रतिनिधि जो जीवन के अंतिम पड़ाव पर लाल परचम को अपने कंधे पर उ गये चलता रहा | रुके ना जो झुके न जो , दबे न जो हम वो इन्कलाब हैं ... के तराने को गुनगुनाता नारे लगाता | हम समानधर्मा साथियों के लिए उर्जा और प्रेरणा के प्रतिक पुरुष का० पब्बर राम को लाल सलाम |

सात फरवरी 1911 ई. को गाजीपुर शहर के पूर्वी छोर का बवाड़े गाँव में माँ जलेबी देवी और पिता ऋतुराज की कोख में जन्मे पब्बर राम भविष्य में चल कर गाजीपुर का एक इतिहास रचेगा यह कौन जनता था | वैश्य परिवार की कमजोर पृष� भूमि के साथ माता पिता के वैचारिक धरातल से भिन्नता | पिता धार्मिकता से जुड़े मन के आदमी और माता क्रातिकारिता की दृष्टि से भरपूर | हिन्दू परिवारों में इस तरह की दृष्टि महिलाओं के भीतर कम ही पाई जाति रही वह भी उस दौर में | माँ जलेबी देवी के विचार का पूरा पूरा असर पब्बर भाई के दिलोदिमाग पर पड़ा | सुर्ख सूरज का उजाला और उसकी तलाश में चल पड़े पब्बर भाई | मिडिल तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद पढाई को स्थगित कर पब्बर भाई हिंदुस्तान के जंगे आज़ादी के हिरावल दस्ते में शामिल हो गए | महात्मा गाँधी का स्वंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा हवाओं में तैर रहा था | सविनय अवज्ञा आन्दोलन और क्रांतिकारियों का आन्दोलन देश को आजाद करने की मुहीम में लग चुका था | जो अक्टूबर 1929 में गाजीपुर के लंका के मैदान में गाँधी जी की सभा होनी थी | पब्बर भाई की ज़िम्मेदारी गाँधी जी की सेवा में कुछ कमी न होने देने जैसी थी | लंका मैदान की सभा के इन्तेजाम में भी वे लगे | यह सब कुछ उनके संकल्प व संघर्ष की उर्जा को देखते हुए बड़े नेताओं ने किया | कांग्रेस के प्रति लगाओ एवं झुकाव के बावजूद उनकी सोच गरम दल के साथियों के साथ कम कर रही थी | पब्बर भाई की क्रन्तिकारी सोच ही उन्हें आगे चलकर लाल झंडे से जोड़ दिया | जैसे जैसे स्वंत्रता आन्दोलन जोर पकड़ता गया वैसे वैसे पब्बर भाई की भूमिका महत्वपूर्ण होती गई अब पब्बर भाई ने किसान व मजदूरों के मोर्चे पर भी अपनी लड़ाई तेज़ कर दी | आज़ादी की लड़ाई में धन की कमी न होने पाए इसके लिए क्रांतिकारियों के साथ मिलकर पब्बर भाई ने आंकुशपुर ट्रेन डकैती की योजना बनाई और उक्त कार्यवाही के सूत्रधार बन गये | अंग्रेजी हुकुमत में गाँव के सामन्तो - ज़मींदारो का उत्पीडन किसानो मजदूरों के ऊपर आतंक का साया बन खड़ा था | पब्बर भाई ने ज़मींदारो के उत्पीडन के खिलाफ किसानो मजदूरों को संग� ीत कर लड़ाई तेज़ कर दी | सामंतो के ल तो की पब्बर भाई को खानी पड़ी | परन्तु बुरी तरह से चोट खाने के बावजूद उ खड़े हुए , उनके साहस को देख किसानो का मनोबल और बढ गया , उनकी लड़ाई और तेज़ हो गयी | गाजीपुर अफीम फैक्ट्री के श्रमिको के शोषण के विरुद्ध भी पब्बर राम ने लम्बी लड़ाई छेड़ दी | किसानो की जुबान पर पब्बर राम का नाम किसान जी के रूप में प्रचालित था |

आज़ादी के बाद 1953 में गाजीपुर नगर पालिका का चुनाव तय था | कम्युनिस्ट पार्टी ने पब्बर भाई को अपना प्रत्याशी घोषित किया और उनके मुकाबले कांग्रेस पार्टी ने गाजीपुर के नाम गिरामी रईस जमींदार परिवार से जुड़े प्रतिष्टित एडोकेट बशीर हसन आब्दी को खड़ा किया | बशीर हसन कोई और नहीं गंगौली के राही मासूम रजा व मुनीश रजा के पिता थे | अंग्रेजो के जाने के बाद भी भारत में सामंतो और ज़मींदारो का रंग रुतबा रियाया वर्ग में बरकरार था |

कहाँ एक छोटे से गाँव का एक आम आदमी राम और कहाँ दौलत सोहरत और दबंगई से भरपूर जमींदार परिवार का पढ़ा लिखा नौजवान , वह भी वकालत की पढाई और जिला कचहरी की शानदार प्रेक्टिस करने वाले बशीर हसन आब्दी एडोवोकेट |

का० पब्बर राम और बशीर हसन आब्दी को चुनावी जंग में दो किरदार और सामने आये आगे चलकर हिंदुस्तान की परम्परा के मज़बूत स्तम्भ बन गए | मेरा आशय मुनीश रज़ा और राही मासूम रज़ा से है जो पब्बर भाई के चुनावी जंग के संवाहक बने | सबसे बड़ी बात यह थी की मुनीश रज़ा और रही मासूम रज़ा कांग्रेस प्रत्याशी बशीर हसन आब्दी के सगे बेटे थे जो उन दिनों गाजीपुर में अपने पिता के साथ रहते हुए पढाई कर रहे थे | चुनाव के दौरान मुनीश रज़ा और मासूम रजा कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी पब्बर भाई को चुनाव जिताने के लिए दिन रात एक किये हुए थे | गली गली नुक्कड़ सभाए , क्रन्तिकारी गीत और भाषण करते हुए मुनीश रज़ा और राही मासूम रज़ा अपने ही पिता के खिलाफ और पब्बर भाई के पक्ष में | मुनीश रज़ा तो चुनाव प्रचार के बाद अपने पिता के घर चले जाते थे और फिर दुसरे दिन प्रचार में लग जाते थे | परन्तु राही मासूम रज़ा तो दिन रात पब्बर भाई के साथ ही रहते और जहाँ जो कुछ मिला खा लेते | राही अपने घर तब वापस लौटे जब काम० पब्बर भाई को शानदार विजय हाशिल हो गई यानि उनके पिता बशीर हसन साहब काम० पब्बर राम से चुनाव हार गए | चुनाव बाद अपनी पढाई पूरी करने अलीगढ चले गए परन्तु सुर्ख रंग में रंगे दोनों भाइयों ने मृत्यु पर्यन्त लाल रंग को अपने सीने से लगाये ही नहीं रखा बल्कि हिन्दुस्तान की परम्परा के बेमिशाल नाम के रूप में इतिहास के पन्नो के हकदार बन गए | मुनीश रज़ा व राही मासूम रज़ा की जीवन चादर को पक्के लाल से रंगने वाला रंगरेज़ कोई और नहीं का० पब्बर राम ही तो थे |

काम० पब्बर राम 1957 और 1967 में दो बार गाजीपुर से विधान सभा का चुनाव जीतकर कम्युनिस्ट पार्टी का गाजीपुर में प्रतिनिधित्व किया | इतना ही नही पुरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में लाल परचम की कामयाबी का जो एक दौर था उसके पीछे पब्बर राम की एक निर्णायक भूमिका तो थी ही |

1980 के बाद से वैचारिक साहितिक सांस्कृतिक गतिविधियों में मेरी सक्रियता बढने लगी | ऋषिकेश जी व डाक्टर पी० एन० सिह का मऊ आना जाना बढने लगा और मेरी भी यात्रायें गाजीपुर के लिए खूब होने लगी | गाजीपुर की कोई भी गोष्टी न छुटने पाए मेरी कोशिश रही और गोष्टी में पब्बर भाई और रामनाथ जी से मुलाकत तो होती रहती थी | बड़े बुजुर्गों के जीवन अनुभव जानना और उनसे कुछ सीखना सुखद लगता था | अजीब आत्मीय लगाओ , स्नेहित आँखे और व्यचारिक खुराक | मऊ के एक एक साथियों का हाल चाल , गतिविधियों के बारे में जानने की उत्सुकता पब्बर भाई की आँखों व जुबान से टपकती रहती थी | जब अभिनव कदम का राही मासूम रज़ा विशेषांक छप कर आया तो पब्बर भाई ने मुझसे 20 प्रतियाँ माँगा ली और शहर में ही नहीं गाँव के लोगो ने उसे बेचभर एक महीने बाद उसकी सहयोग राशि भी श्री अजय कुमार मिश्र के माध्यम से मऊ भिजवाया |

काम० पब्बर भाई को याद करना एक लम्बे जीवन संघर्षों को याद करना है जो जीवन पर्यन्त आम आदमी के सवालों को लेकर सत्ता , समाज , प्रशासन से मु भेड़ करता रहा | कभी हार न मानने के साथ लाल झन्डे को तहरीक को जीवन की आखरी साँस तक चलता रहा | ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को नमन के साथ साथ लाल झंडे के योद्धा को बार बार सलाम |

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